बेहतर जीवन की आशाओं के साथ बहुत से भारतीय दक्षिण अमेरिका के छोटे से देश सूरीनाम में गए थे। लल्ला रूख नामक पहला भारतीय नौकायन जहाज लल्ला रूख वहाँ 5 जून, 1873 को पंहुचा था। भारतीय प्रवासियों का आखिरी जहाज़ 25 मई, 1916 को इस छोटे से देश में वहाँ पहुंचा था। अनुमान है कुल मिलाकर, 34,304 प्रवासी सूरीनाम पहुंचे थे। इसमें से अधिकांश भोजपुरी मूल के थे । ये मज़दूर वहां कोको, कपास और गन्ने के बागानों में काम करने गए थे। ब्रिटिश राज के दौरान, कई भारतीयों को काम के लिए दूसरे ब्रिटिश उपनिवेशों में भेजा गया था।
दक्षिण अमेरिका के इस चोट देश ने डच उपनिवेश में गुलामी के उन्मूलन के बाद, डच सरकार ने अनुबंध श्रमिकों की भर्ती पर यूनाइटेड किंगडम के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए। 1873 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत से भारतीयों ने गिरमिटिया मजदूरों के रूप में सूरीनाम में प्रवास करना शुरू किया, जिनमें से अधिकांश उत्तरी भाग से थे जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगालऔर कुछ हद तक हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु शामिल थे। हालाँकि, प्रवासियों में दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों जैसे कि वर्तमान अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी आये मज़दूर थे।